चोटी की पकड़–45

"क्या बात है?"


"चल जल्द। बात तो दुनिया भर की जानता है।"

रामफल उठा। दोनों राजा की ओर से रखे गए सिपाहियों के नाई की ओर चले।

नाई फुरसत में था। कहा, "पालागो, रामफल महाराज, राम-राम दिलावर साहब।"

रामफल ने आशीर्वाद दिया। दिलावर ने राम-राम की।

रामफल ने कहा, "दाढ़ी बहुत बढ़ गई है, खुजला रही है, इसके बराबर कर दो, मूँछें भी। किनारे छाँट दो।"।

"वाह महाराज," नाई ने कहा, "हम समझे, आप शौक बुझाते हुए पितरों को भूल गए! लेकिन परमात्मा की कृपा है। बैठ जाइए। धन्य हूँ मैं।"

रामफल बैठे। नाई ने दिलावर की जैसी दाढ़ी-मूँछें बना दीं। फिर दिलावर से पूछा, "आपका, साहब, कौन-सा फ़ैशन होगा? आजकल तो कर्ज़न फ़ैशन की चाल है।"

"वह, काम पूरा होने पर, सराध में जैसे। इसने काम अधूरा छोड़ रखा है। इसकी जैसी थी, वैसी ही बना दो। अभी दाढ़ी के बाल कुछ छोटे हैं, खैर नोकदार बना दो। नाक के नीचेवाले बाल सफाचट कर दो।"

नाई गंभीर हो गया। दिलावर बैठे। रामफल तल्लीन होकर शीशा देखते रहे।

बाल बन जाने पर दोनों तालाब में स्नान करने गए। दिलावर ने लुंगी पहनी। दोनों चले। बाहर के फाटक पर प्रभाकर बैठा हुआ ऊब रहा था। दिलावर ने रामफल को दिखाया, कहा, आप हैं। रास्ते में उसने अच्छी तरह समझा दिया था।

उसकी बात प्रभाकर ने नहीं सुनी। दिलावर के रूप में रामफल को देखकर उसको धुकचा लगा। पर उसको अपने काम से काम था। दिलावर ने कह दिया था कि उसी का नाम बतलाएगा।

रामफल ने प्रभाकर को बाहर बुलाया। कहा, "चलिए, आप लोगों को दूकान में अच्छी तरह भोजन करा दें। रात को ले चलेंगे। अभी रास्ता साफ नहीं है। वहाँ आप लोगों की जगह दुरुस्त की जाएगी। बैठने-लेटने के पलंग-बिस्तर-मशहरी, मेज़-कुर्सी आदि लाने-लगाने पड़ेंगे। तब तक चलिए, बाज़ार की सैर कीजिए।"

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